महेश राठी
जला दिये गये थानों, दफ्तरों
लूटी गयी गोलियों, बंदूकों की नाल से
उगेगा शान्ति का सूरज
निर्वस्त्र औरतों की परेड
उनके सामूहिक बलात्कार से
उगेगा शान्ति का सूरज
बंद स्कूलों की खिडकियों,
ध्वस्त मंदिरों की दिवारों,
जले चर्चों की सलीबों से उतर
उगेगा शान्ति का सूरज
राज्य और देश की राजधानियां
जब डरायेंगीं नागरिकों को
तो उग आयेगा शान्ति का सूरज
लहू से तर बतर हो जायेगी
जब हर जिंदगी, हर सांस,
हर बस्ती, हर शहर
पूरा सूबा जब भर जायेगा सन्नाटे से
तो उस सुनसान भूखण्ड़ पर
उगेगा फिर शान्ति का सूरज
नही ंतो,
जलती लाशों की होलियों के बीच
जुमले, चुटकुले, किस्से-कहानियां सुनाता
नई पोशाक बदल, इतराता, इठलाता राजा
पकड लायेगा शान्ति का सूरज
और उसे उगा देगा मणिपुर के आसमान पर