- महेश राठी
तुमने देखा है कभी
काला सूरज,
या
सरपट गति को रोकते
हिनहिनाते घोडे़
या देखे हो कभी
मरघट में गाये जाते
जीवन के गीत
या देखें हो कभी
कहर की आंखों में
गम के आंसू
क्या देखे हैं कभी
पिशाचों के प्रलाप में
लोरी की थाप की तरह उंघते बच्चे
देखा तो ना होगा कभी
सूरज को लील कर
बढ़ता हुआ उजाला
या फिर
विकास के दस्तख्त वाले
तबाही के फरमान!
तो आइये,
अवध आपको बुलाता है।
या
सरपट गति को रोकते
हिनहिनाते घोडे़
या देखे हो कभी
मरघट में गाये जाते
जीवन के गीत
या देखें हो कभी
कहर की आंखों में
गम के आंसू
क्या देखे हैं कभी
पिशाचों के प्रलाप में
लोरी की थाप की तरह उंघते बच्चे
देखा तो ना होगा कभी
सूरज को लील कर
बढ़ता हुआ उजाला
या फिर
विकास के दस्तख्त वाले
तबाही के फरमान!
तो आइये,
अवध आपको बुलाता है।
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